#महाराष्ट्र में अपराध
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संगठित अपराध क्या है? भारत में इसकी वर्त्तमान स्थिति क्या है?
संगठित अपराध एक ऐसा अपराध है जो योजनाबद्ध तरीके से एक या एक से अधिक व्यक्तियों या संगठनों द्वारा किया जाता है। यह अक्सर एक स्थायी संगठन द्वारा किया जाता है जो अवैध गतिविधियों को करने के लिए बनाई जाती है, और ये गतिविधियाँ सामान्यतः लाभ के लिए होती हैं। संगठित अपराध में विभिन्न प्रकार के अपराध सम्मिलित हो सकते हैं, जैसे:
मादक पदार्थों की तस्करी: विभिन्न प्रकार के गैर-कानूनी नशीले पदार्थों का उत्पादन और वितरण।
मानव तस्करी: लोगों को अवैध तरीके से खरीदना-बचना या उनका शोषण करना।
संगठित हत्या और हिंसा: प्रतिद्वंद्वी समूहों या कानून प्रवर्तन एजेंसियों के खिलाफ हिंसा।
बंदूक तस्करी: अवैध हथियारों का व्यापार।
डकैती और लूटपाट: संगठित तौर पर धन और संपत्ति की चोरी करना।
जालसाजी: वित्तीय धोखाधड़ी, जैसे कि धोखाधड़ी वाले चेक, क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी आदि।
भारत में संगठित अपराध की वर्तमान स्थिति
भारत में संगठित अपराध एक गंभीर समस्या है, और इसके विभिन्न पहलू हैं:
गैंगस्टर और आपराधिक संगठन: भारत में कई संगठित आपराधिक समूह हैं, जैसे कि डॉन, गैंगेस्टर और माफिया, जो विभिन्न प्रकार के अपराधों में संलग्न हैं। इनमें से कुछ मुख्य संगठन हैं दाऊद इब्राहीम का 'डी कंपनी', छोटा राजन, आदि।
राजनीतिक और आर्थिक जुड़ाव: कई संगठित अपराधियों का राजनीतिक और व्यावसायिक क्षेत्र में प्रभाव होता है, जिससे वे अपराधों को नियंत्रित कर पाते हैं या सरकार में अपनी पकड़ बना पाते हैं।
अवैध मादक पदार्थों का व्यापार: भारत में ड्रग तस्करी एक महत्वपूर्ण समस्या बन चुकी है। पंजाब, उत्तर पूर्वी राज्यों और अन्य क्षेत्रों में ड्रग्स का अवैध व्यापार बढ़ रहा है।
मानव तस्करी: मानव तस्करी, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के लिए, एक गंभीर मुद्दा है। इसे कई संगठित अपराधी समूह संचालित करते हैं।
प्रवर्तन और कानून: भारत में संगठित अपराध को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न कानून हैं, जैसे मकोका (MCOCA) (महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम), लेकिन इन कानूनों की प्रभावशीलता को अक्सर कमजोर प्रशासनिक उपायों और राजनीतिक संरक्षण के कारण चुनौती का सामना करना पड़ता है।
सूचना और जागरूकता: संगठित अपराध के साथ प्रभावी रूप से लड़ने के लिए, लोगों में जागरूकता बढ़ाना और उनके अधिकारों के प्रति सजग रहना महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
संगठित अपराध भारत में एक बड़ी चुनौती ��नी हुई है, जो समाज, कानून, और आर्थिक संरचना पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। इस मुद्दे से निपटने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ-साथ समाज को मिलकर काम करना होगा, और जनता को इस विषय में जागरूक किया जाना चाहिए, ताकि संगठित अपराध की जड़ों को मजबूती से काटा जा सके।
Advocate Karan Singh (Kanpur Nagar) [email protected] 8188810555, 7007528025
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25 लाख का बीमा, जातिगत जनगणना…खरगे ने जारी किया MVA का घोषणा पत्र, जानें वादों मे��� क्या-क्या?
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए महा विकास अघाड़ी का घोषणा पत्र जारी कर दिया है. इस घोषणा को महाविकास आघाड़ी की 5 गारंटियों के इर्द गिर्द रखा गया है. घोषणा पत्र जारी करते हुए खरगे ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध में महाराष्ट्र देश में दूसरे नंबर पर है. महाराष्ट्र में महिलाओं के खिलाफ अपराध को रोकने के लिए ठोस निर्भय नीति बनाएंगे. खरगे ने आगे कहा कि हम…
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Lawrence Bishnoi: खुद को अपना हीरो मानता है लॉरेंस बिश्नोई, एएसपी रैंक के पूछताछ अधिकारी ने दी जानकारी
Lawrence Bishnoi: खुद को अपना हीरो मानता है लॉरेंस बिश्नोई, एएसपी रैंक के पूछताछ अधिकारी ने दी जानकारी #News #NewsUpdate #newsfeed #newsbreakapp
Lawrence Bishnoi News: महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी की हत्या का मामला हो या फिर भारत कनाडा के बीच चल रही तनातनी, इन दोनों ही मामलों में गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई का नाम निकलकर सामने आ रहा है। गुजरात की साबरमती जेल में बंद लॉरेंस तेजी के साथ देश और देश के बाहर हो रहे हाई-प्रोफाइल अपराधों का पर्याय बनता जा रहा है। अपराध की दुनिया में नाम बनाने की चाहत रखने कई लोगों के लिए लॉरेंस बिश्नोई…
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महाराष्ट्र में 6.2 करोड़ रुपये की एम्बरग्रीस जब्त, 3 गिरफ्तार
ठाणे (महाराष्ट्र) , 29 सितंबर : महाराष्ट्र में ठाणे अपराध शाखा की कल्याण इकाई ने ती�� लोगों को गिरफ्तार किया और 6.20 करोड़ रुपये की 5.6 किलोग्राम एम्बरग्रीस (व्हेल की उल्टी) जब्त की। एम्बरग्रीस’ भूरे रंग का मोम जैसा एक पदार्थ होता है जो स्पर्म व्हेल के पेट में बनता है। व्हेल के उल्टी करने के बाद यह पदार्थ समुद्र के पानी में तैरता हुआ पाया जाता है। इत्र बनाने में इस्तेमाल होने वाली एम्बरग्रीस की…
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मुख्यमंत्री कहते हैं कि हवा में गिर गया शिवाजी का स्टैच्यू.... MVA के मुंबई मार्च में क्या बोले शरद पवार
मुंबई: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों से पहले शिवाजी महाराज का स्टैच्यू गिरने का मुद्दा महायुति के परेशानी का सबब बनता जा रहा है। महाविकास आघाडी के नेताओं ने रविवार को हुतात्मा चौक से 'गेटवे ऑफ इंडिया' तक प्रोटेस्ट मार्च निकाला। मार्च में शरद पवार, उद्धव ठाकरे और नाना पटोले के अलावा शिवाजी के वशंज और कोल्हापुर से सांसद शाहू महाराज भी मौजूद रहे। इस मौके पर शरद पवार ने बड़ा कटाक्षा किया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि मालवण के राजकोट किले पर छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति हवा के कारण गिर गई। पवार ने कहा कि गेटवे ऑफ इंडिया के सामने की शिवाजी मूर्ति कई सालों से है। यहां तक कि राज्य के कई हिस्सों में ऐसी मूर्तियां आज भी मजबूती से खड़ी हैं। राजकोट किले में मूर्ति ढहने की घटना भ्रष्टाचार का उदाहरण है। महाराज की प्रतिमा गिरने से देश के शिव प्रेमियों का अपमान हुआ है। महाराष्ट्र कांग्रेस चीफ नाना पटोले ने कहा कि शिवाजी महाराज के नाम पर वोट मांगना और सत्ता में आने के बाद उनका अपमान करना बीजेपी का पेशवा रवैया है। यह अपराध अक्ष्यम है पटोले ने कहा कि बीजेपी सरकार ने गबन और भ्रष्टाचार कर छत्रपति शिवराय का अपमान करने का पाप किया है। मालवण में न केवल शिव राय की मूर्ति गिरी, महाराष्ट्र धर्म को रौंदा गया और महाराष्ट्र का अपमान भी हुआ। शिवाजी महाराज हमारे भगवान हैं, खोके सरकार ने हमारे देवताओं का अपमान किया है। विधानसभा चुनाव का समय होने के कारण प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने माफी मांगी लेकिन यह पाप अक्षम्य है। इस गलती के लिए कोई बहाना नहीं है। बीजेपी का पेशवा रवैया राज्य और देश में छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर वोट मांगना और सत्ता में आने पर उनका अपमान करना है। महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नाना पटोले ने इतना बड़ा हमला बोला है। इससे पहले एमवीए नेताओं ने हुतात्मा चौका पर शहीदों को नमन किया फिर वे मार्च के गेटवे ऑफ इंडिया की तरफ बढ़े। पीएम मोदी ने क्यों मांगी माफी?शिवसेना पार्टी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि प्रधानमंत्री ने माफी इसलिए मांगी क्योंकि छत्रपतिंत की मूर्ति गिरने से देश भर के शिव प्रेमियों की भावनाएं नाराज थीं, लेकिन माफी मांगते वक्�� भी उनके चेहरे पर उदासी छाई हुई थी। उन्होंने मूर्ति गिरने के लिए माफ़ी मांगी, उन्होंने भ्रष्टाचार के लिए माफ़ी मांगी। उन्होंने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए माफ़ी मांगी। महाराज का अपमान करने वालों को जनता माफ नहीं करेगी। उद्धव ठाकरे ने देश के प्रवेश द्वार गेटवे ऑफ इंडिया से अपील की है कि जब तक इन शिवद्रोहियों को भारत से बाहर न कर दिया जाए, तब तक चुप न बैठें। शाहू महाराज भी भड़के छत्रपति शाहू महाराज ने इस मौके पर कहा कि शिवाजी महाराज की मूर्ति गिरने से लोग गुस्से में हैं। यह महाराज और महाराष्ट्र का अपमान है। जिन्होंने ऐसा किया उनके लिए कोई माफी नहीं है। इस मामले में जो भी दोषी हैं उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। शाहू महाराज ने कहा कि शिवाजी महाराज का सम्मान बनाए रखना चाहिए। इससे पहले प्रोटेस्ट मार्च में उद्धव ठाकरे और नाना पटोले ने सांकेतिक तौर पर सीएम एकनाथ शिंदे, डिप्टी सीएम अजित पवार और देवेंद्र फडणवीण की तस्वीरों पर जूते मारे। http://dlvr.it/TCfCdv
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महायुति या महा विकास अघाड़ी - महाराष्ट्र में महिला सुरक्षा की तस्वीर अपरिवर्तित
कोविड-19 महामारी के कारण लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान भी महाराष्ट्र में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या में कमी नहीं आई। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार के कार्यकाल के दौरान, महाराष्ट्र में हर दिन औसतन 109 महिलाएं अत्याचार का शिकार हुईं। दुर्भाग्य से, स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है। बदलापुर के एक स्कूल…
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पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और आईपीसी की धारा 354 के तहत हमला
परिचय
सतीश बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र (2020) हाल ही में लिया गया निर्णय जो बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया है, वो व्यापक रूप से विवादित था। यह निर्धारित करने के लिए आवेगपूर्ण (हीटेड) बहस हुई कि क्या ‘त्वचा से त्वचा’ का संपर्क यौन हमले (सेक्सुअल असाल्ट) के दायरे में आएगा। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले को खारिज कर दिया।यह लेख यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो अधिनियम) की धारा 7 और भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 354 के बीच अंतर से संबंधित है। यह इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि क्या इस मामले में उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय देते समय और बाद के फैसले में पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के दायरे की व्याख्या करते हुए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक त्रुटिपूर्ण व्याख्यात्मक पद्धति (एक्सप्लेनेटरी मैथड) का उपयोग किया गया था।
पॉक्सो अधिनियम के तहत हमला
बाल यौन हमला, उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए 2012 में पॉक्सो अधिनियम बनाया गया था। यह एक लिंग-तटस्थ (जेंडर न्यूट्रल) कानून है, यानी पीड़ित और आरोपी, पुरुष या महिला हो सकते हैं। यह एक पीड़ित-केंद्रित (विक्टिम सेंटर्ड) कानून है और न्यायिक प्रक्रिया के हर चरण के माध्यम से बच्चों के हितों की रक्षा करने पर केंद्रित है। उन्होंने विशेष अदालतों में साक्ष्य दर्ज करने, रिपोर्ट करने, जांच करने और त्वरित परीक्षण करने के लिए बाल-सुलभ (चाइल्ड फ्रेंडली) तंत्रों को शामिल किया है।पॉक्सो अधिनियम के तहत, एक ��च्चे को किसी भी ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसने 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है। यह विभिन्न प्रकार के यौन शोषण को स्पष्ट करता है जैसे कि भेदक (पेनेट्रेटिव) और गैर-भेदक हमला (नॉन-पेनेट्रेटिव असाल्ट), यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी।
पॉक्सो अधिनियम की धारा 7
पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 बच्चों के खिलाफ यौन शोषण के दायरे को परिभाषित करती है। इसमें कहा गया है कि “जो कोई भी यौन इरादे से बच्चे की योनि (वजाइना), लिंग (पेनिस), गुदा (एनस) या स्तन को छूता है या बच्चे को ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति की योनि, लिंग, गुदा या स्तन को छूने पर मजबूर करता है, या यौन संबंध के साथ कोई अन्य कार्य करता है इस इरादे से जिसमें भेदव(पेनेट्रेशन) के बिना शारीरिक संपर्क शामिल है, तो उसे यौन हमले का अपराध कहा जाता है।
पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन हमले का अपराध करने की शर्तें
उपरोक्त प्रावधान से, अपराध का गठन करने के लिए चार आवश्यक तत्व निर्धारित किए जा सकते हैं:- अपराधी का यौन इरादा, - बच्चे के निजी अंग को छूना, - बच्चे को अपने निजी अंगों या किसी अन्य व्यक्ति के निजी अंगों को छूना, - कोई अन्य कार्य करता है जिसमें भेदव (पेनेट्रेशन) के बिना शारीरिक संपर्क होता है। - अभियोजन पक्ष ने यह तर्क पेश नहीं किया कि आरोपी ने पीड़िता से छेड़छाड़ करने से पहले उसका टॉप हटा दिया। - सजा, किए गए अपराध के अनुपात में होनी चाहिए। धारा 7 के तहत और कड़ी सजा दी जाती है, इसलिए पुख्ता सबूत पेश करने की जरूरत है। - यह स्पष्ट नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता से छेड़छाड़ करने के उद्देश्य से उसके ऊपर हाथ डाला या नहीं। इसलिए, ‘त्वचा से त्वचा’ का संपर्क धारा 7 के तहत किए गए इस तरह के कार्य को अपराध होने से रोकेगा।इन कारणों को बताते हुए न्यायालय ने माना कि आरोपी आईपीसी की धारा 354 के तहत पीड़िता का शील भंग करने का दोषी है।यह तर्क दिया गया था कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के तहत यौन हमला के अपराध का गठन करने के लिए ‘त्वचा से त्वचा’ संपर्क आवश्यक है। धारा के दूसरे भाग में ‘संपर्क’ से पहले ‘भौतिक’ था। इसलिए, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि त्वचा से त्वचा का संपर्क आवश्यक है। इसके अलावा, धारा 354 के तहत कपड़े को छूना भी एक आपराधिक बल माना जाएगा।न्यायालय ने पूछा कि ‘स्पर्श’ और ‘शारीरिक संपर्क’ में अंतर क्यों किया जा रहा है। विधायिका दो अलग-अलग शब्दों का प्रयोग क्यों करेगी जबकि उनका अर्थ एक ही है? क्या यह समझा जा सकता है कि शारीरिक संपर्क स्पर्श से कम है?आरोपी की ओर से वकील ने कहा कि ‘शारीरिक संपर्क’ आवश्यक है अन्यथा दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को भी अपराधी बनाया जा सकता है। संपर्क शारीरिक संपर्क द्वारा योग्य है, दूसरी ओर, स्पर्श नहीं है।न्यायालय ने कहा कि यह व्याख्या तार्किक (लॉजिकल) है या नहीं यह देखने के लिए विभिन्न स्थितियों को देखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जब एक प्रावधान में अपराध स्पष्ट रूप से ��िर्धारित किया गया है तो किसी के तर्क को बढ़ाने और अन्य प्रावधानों पर भरोसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है।न्यायालय ने इसे एक उदाहरण की मदद से स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को पेन से मारता है, तो त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं होता है। पहले बताए गए तर्कों के अनुसार कोई भी यौन हमला नहीं हुआ है। हालांकि, शील के साथ बच्चे की निजता का उल्लंघन होता है।अदालत ने अंततः माना कि आरोपी आईपीसी की धारा 342 और 354 के तहत दोषी था और उसे एक साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई और यदि अभियुक्त एक महीने के कठिन कारावास की सजा भुगतने में चूक करता है तो 500 रुपये के जुर्माने का भुगतान करना पड़ेगा।
यह निर्णय व्यापक रूप से विवादित क्यों था
यह निर्णय व्यापक रूप से विवादित था, क्योंकि इसमें कहा गया था कि न्यायालयों ने इस मुद्दे को संबोधित करते समय एक त्रुटिपूर्ण व्याख्यात्मक पद्धति का उपयोग किया था।जगर सिंह बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2014) में, हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय ने पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 को आकर्षित करने के लिए त्वचा से त्वचा के संपर्क की अनिवार्यता को नकार दिया था। यह धारा किसी व्यक्ति के नग्न निजी अंगों को छूने का प्रावधान नहीं करती है। यहां तक कि जब पीड़िता ने कपड़े पहने हों, तब भी उनके निजी अंगों को छूने का कार्य धारा 7 के प्रावधानों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त होगा।गीता बनाम केरल राज्य (2020) के मामले में, केरल के उच्च न्यायालय ने सत्र न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा दिए गए जमानत के आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि यौन अपराध की गंभीरता कम नहीं होगी यदि स्पर्श पीड़ित की पोशाक के माध्यम से था। इसलिए, त्वचा से त्वचा के संपर्क का अभाव अपराध की गंभीरता का एक प्रासंगिक संकेतक नहीं होगा।यूनाइटेड किंगडम में, यौन अपराध अधिनियम, 2003 की धारा 79(8), स्पर्श को परिभाषित करती है। इसमें शरीर के किसी अंग से, किसी भी चीज से छूना शामिल है। इसमें विशेष रूप से ऐसी तरह का छूना शामिल है जिससे पेनेट्रेशन होता है। यह स्पष्ट रूप से अनुमान लगाया जा सकता है कि पीड़ित के कपड़े पहने होने के बावजूद, शरीर के किसी भी अंग को छूने के बाद भी ‘स्पर्श’ होगा। यह जरूरी है कि कानून निर्माता इस तथ्य पर ध्यान दें और भविष्य में इस तरह की अतार्किक व्याख्याओं को रोकने के लिए भारतीय कानूनों में एक समान प्रावधान जोड़ें।रेजिना बनाम एच (2005) में, यह इंग्लैंड और वेल्स न्यायालय ऑफ अपील द्वारा आयोजित किया गया था कि “जहां एक व्यक्ति ने कपड़े पहने हैं, हम मानते हैं कि कपड़ों को छूना, यौन अपराध अधिनियम, 2003 की धारा 3 के तहत दिए अपराध के उद्देश्य से छूना है”।पॉक्सो के तहत आरोपी को दंडित करने के लिए न्यायालय की अनिच्छा आईपीसी के तहत एक साल की तुलना में तीन साल की कड़ी सजा के आधार पर थी। पॉक्सो अधिनियम की धारा 42 वैकल्पिक दंड के बारे में बात करती है और कहती है कि जब कोई अधिनियम आईपीसी और पॉक्सो दो��ों के तहत अपराध है, तो आरोपी को दोषी पाए जाने पर उस अधिनियम के तहत दंडित किया जाना चाहिए जो अधिक सजा देता है। इसलिए, अदालत अपराधी को पॉक्सो के साथ-साथ आईपीसी दोनों प्रावधानों के तहत दंडित कर सकती थी। केवल धारा 42 को पढ़ने से पाठक का ध्यान ‘होगा’ शब्द के उपयोग की ओर जाता है जिससे अदालत के लिए और अधिक कठोर सजा देना अनिवार्य हो जाता है। लेकिन अदालत ने अपराधी को कुछ हद तक सजा देने के लिए उसी तथ्य का इस्तेमाल किया।लोक प्रसाद लिंबू बनाम सिक्किम राज्य (2019) में, पीड़ित नाबालिग लड़कियां थीं, जिन्हें टटोला गया था। सिक्किम उच्च न्यायालय ने कहा कि आईपीसी और पॉक्सो दोनों के तहत दी गई सजा समानांतर रूप से दी जानी चाहिए।पॉक्सो अधिनियम की धारा 29 के तहत सबूत का भार पीड़िता पर नहीं बल्कि आरोपी पर होता है। जब किसी व्यक्ति पर पॉक्सो अधिनियम की धारा 3,5,7 और 9 के तहत अपराध करने का आरोप लगाया जाता है, तो यह आवश्यक है कि अदालत यह मान ले कि आरोपी तब तक दोषी है जब तक कि आरोपी अपनी बेगुनाही साबित करने में सक्षम न हो।जस्टिन रेनजिथ बनाम भारत संघ (2020) में, केरल उच्च न्यायालय ने धारा 29 की संवैधानिकता को इस आधार पर ठहराया कि पीड़िता नाबालिग है, और एक बार स्थापित होने के बाद कथित उदाहरण की घटना आरोपी को उन दावों का खंडन करने के लिए छोड़ देती है। इसलिए, मामले में, यह स्थापित किया गया था कि एक नाबालिग के साथ छेड़छाड़ की गई थी, लेकिन अदालत का ‘सख्त सबूत और गंभीर आरोप’ की आवश्यकता का गलत तर्क गलत था क्योंकि आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए बोझ पीड़िता पर था।यह निर्णय एक गलत मिसाल की ओर भी ले जाता है क्योंकि ‘त्वचा से त्वचा’ के संपर्क को एक आवश्यक के रूप में रखना और उन अपराधियों को प्रतिरक्षा प्रदान करना जो कपड़े पहने हुए नाबालिग को अनुचित तरीके से छूते हैं। यहघोर अन्याय का कारण बनेगा और क़ानून की मंशा, यानी बच्चों के खिलाफ यौन शोषण को रोकना, कम आंका जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले को खारिज किया
भारत के महान्यायवादी (अटॉर्नी जेनरल) बनाम सतीश और एक अन्य (2021) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के महान्यायवादी, राष्ट्रीय महिला आयोग और महाराष्ट्र राज्य द्वारा उपरोक्त चर्चा में बॉम्बे उच्च न्यायालय का किए गए फैसले के खिलाफ दायर अपीलों को सुना।न्यायमूर्ति उमेश ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने कहा कि यदि पॉक्सो की धारा 7 के तहत स्पर्श या शारीरिक कार्य की व्याख्या की जाती है तो बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए एक कार्य होने का पूरा उद्देश्य नष्ट हो जाएगा। बंबई उच्च न्यायालय की त्रुटिपूर्ण व्याख्या न केवल नागरिकों को नुकसान से बचाने के लिए कानून पर सीमाएं लगाएगी बल्कि यह विधायिका के इरादे को पूरी तरह से उलट ��ेगी।सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, उच्च न्यायालय के फैसले में तर्क काफी असंवेदनशील रूप से तुच्छ है – वास्तव में वैधता – अस्वीकार्य व्यवहार की एक पूरी श्रृंखला जो अवांछित घुसपैठ के माध्यम से एक बच्चे की गरिमा (डिग्निटी) और स्वायत्तता (ऑटोनोमी) को कमजोर करती है।यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे के शरीर के यौन या गैर-यौन अंगों को दस्ताने, कंडोम, चादर या कपड़े से छूता है तो अधिनियम का उद्देश्य ही कमजोर हो जाएगा। यौन आशय मौजूद है लेकिन बॉम्बे उच्च न्यायालय की व्याख्या के अनुसार, यह पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के तहत यौन हमले का अपराध नहीं होगा।सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न के अपराध को गठित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटक ‘यौन इरादा’ है, न कि बच्चे के साथ ‘त्वचा से त्वचा’ का संपर्क। यह साबित करने के लिए कि अपराध हुआ है, अभियोजन को त्वचा से त्वचा के संपर्क को साबित करने की आवश्यकता नहीं है।सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि पॉक्सो, अधिनियम की धारा 7 में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह के संपर्क शामिल होंगे, यानी चाहे त्वचा से त्वचा का संपर्क हो या नहीं, इस धारा के तहत अपराध का गठन किया जाएगा। किसी बच्चे को अनुचित तरीके से छूने का अपराधी का इरादा इस धारा के प्रावधानों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है। इसलिए, अदालत ने धारा 7 की व्याख्या को स्पष्ट और विस्तृत किया।
पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के बीच मुख्य अंतर
सतीश बनाम महाराष्ट्र राज्य का मामला दोनों धाराओं के बीच के अंतर को और भी स्पष्ट करता है। पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के बीच मुख्य अंतर इस प्रकार हैं:
धारा के तहत दंडनीय अपराध
पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 यौन इरादे से जानबूझकर हमला करने से संबंधित है, जबकि भारतीय दंड संहिता की धारा 354 एक महिला की शील (शरीर नहीं) को अपमानित करने से संबंधित है।
पीड़िता का लिंग
पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 लिंग-तटस्थ है, जबकि भारतीय दंड संहिता की धारा 354 महिला केंद्रित है।
सजा की मात्रा
पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 के साथ पठित धारा 7 के तहत, अपराधी को किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जाता है, जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे पांच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माना भी हो सकता है। दूसरी ओर, भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत, अपराधी को किसी एक अवधि के लिए कारावास, जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना, या दोनों के साथ दंडित किया जाएगा।
पूर्व-आवश्यकता के रूप में यौन आशय
पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के तहत यौन आशय एक आवश्यक शर्त है, जबकि भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत, आरोपी की यौन संतुष्टि अप्रासंगिक है।
सबूत के बोझ
पॉक्सो अधिनियम के तहत सबूत का भार आरोपी पर होता है। पॉक्सो अधिनियम की धारा 29 में कहा गया है कि “जब किसी व्यक्ति पर नाबालिग के खिलाफ यौन उत्पीड़न का अपराध करने के लिए मुकदमा चलाया जाता है, तो मामले की सुनवाई कर रही विशेष अदालत आरोपी को दोषी मान लेगी।” वहीं दूसरी ओर भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत सबूत का भार आरोप लगाने वाला होता है।
निष्कर्ष
बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को कम करने के उद्देश्य से एक अलग क़ानून बनाने के तर्क को उच्च न्यायालय की व्याख्यात्मक पद्धति से कम आंका गया था। निर्णय के दूरगामी नकारात्मक सामाजिक-कानूनी निहितार्थ हो सकते थे और अपराधियों के लिए इस तथ्य का लाभ उठाना सामान्य होगा कि गोपनीयता, शारीरिक स्वायत्तता और अखंडता का उल्लंघन केवल तभी किया जा सकता है जब पीड़ित ने कपड़े नहीं पहने हों। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिए गए अंतिम निर्णय की बहुत आवश्यकता थी और इसने घोर अन्याय को रोका।इसलिए, भविष्य में, ऐसी ही स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिसमें पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और भारतीय दंड संहिता की धारा 354 दोनों ओवरलैप हो जाती हैं। आरोपी द्वारा कौन सा अपराध किया गया है, यह पता लगाने के लिए दो धाराओं के बीच महत्वपूर्ण अंतर की जांच की जानी चाहिए। Read the full article
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प्रसंजीत सरकार : वन परिक्षेत्र कापसी सामान्य में गोपनीय सूचना के आधार पर वन्यजीव अपराध में लिप्त आरोपी रणजीत कुलदीप स्वर्गीय पिता आनंद कुलदीप ग्राम ब रा दा को पूछताछ के लिए विभाग का स्थानीय अमला द्वारा अभिरक्षा में लेकर पूछताछ किया गया उक्त सानिध्य को वन विभाग कुछ दिनों से उनके मोबाइल को वन विभाग द्वारा ट्रेस किया जा रहा था गोपनीय सूत्रों के अनुसार रंजीत कुलदीप ग्राम बां रा दा के द्वारा वन्य जीब के तस्करी में संलिप्त होने संदेह होने पर उनसे विस्तर पूर्वक पूछताछ किया गया। जिसमें उनके मोबाइल से बने वन्य जीव के वीडियो से संबंधित फोटोग्राफ्स एवं वीडियो मिला वन विभाग द्वारा जांच के दौरान उनके संपर्क में अन्य व्यक्तियों का खुलासा किया गया जिससे सभी संदिग्ध आरोपियों के एक दूसरे के निशानदेही पर वन परिक्षेत्र के स्थानीय अमला पूछताछ के लिए अपनी अभिरक्षा में लिया तथा सभी संदिग्ध आरोपियों से पूछताछ किया गया। इसी वन अपराध की करी में आरती राय ग्राम धुंधरा का भी खुलासा किया गया जो कि इंद्रावती टाइगर रिजर्व जिला बीजापुर के टीम द्वारा वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा अंतर्गत पी ओ आर क्रमांक 494/ 14 दिनांक 30. 6.23 का प्रकरण बनाया गया जो वन परीक्षेत्र कपसी द्वारा अभिरक्षा में लिया समस्त संदिग्ध आरोपियों से मोबाइल के माध्यम से एक-दूसरे से संपर्क में रहे हैं। सानिध्य आरोपियों में रंजीत राय पिता अनंत ग्राम वा रा दा सुजीत पिता सुरेश बैरागी ग्राम 31 सुशेन ढली पिता सुशील ढली ग्राम 31 पिता फागूराम सरखेड़ा महाराष्ट्र जोकि इंद्रावती टाइगर रिजर्व जिला विजयपुर के प्रकरण से संबंध रखने के कारण पूछताछ के लिए उनको बीजापुर ले जाया गया उनके पूछताछ में गिरोह से संबंधित अन्य सदस्यों की खुलासा होने की संभावना है वन विभाग के इस कार्यवाही में वन मंडलाअधिकारी पश्चिम भानूप्रतापपुर के मार्गदर्शन एवं उप वन मंडलाअधिकारी पूर्व कपसी के सहयोग से सभी संदिग्ध आरोपियों तक सटीक निशानदेही पर पहुंच पाना संभव हुआ।
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Maharashtra | महाराष्ट्र: डेढ़ करोड़ रुपये के गबन के मामले में कांग्रेस नेता गिरफ्तार
Thane Arrest नागपुर: महाराष्ट्र में नागपुर पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने एक धर्मस्थल न्यास में करीब डेढ़ करोड़ रुपये के कथित गबन के मामले में रविवार को एक कांग्रेसी नेता को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। शेख हुसैन अब्दुल जब्बार, जो हजरत ताजुद्दीन बाबा दरगाह के मामलों का प्रबंधन करने वाले ताज बाग ट्रस्ट के अध्यक्ष थे, उन पर धर्मार्थ आयुक्त की अनुमति के बिना…
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नाबालिग से बलात्कार का आरोपी शादाब पुलिस की गिरफ्त में 25000 का था ईनाम
देहरादून रायपुर रायपुर पुलिस व SOG टीम को मिली बड़ी सफलता, नाबालिक युवती से दुष्कर्म के अपराध मे 09 माह से फरार चल रहे 25000/- के इनामी आरोपी को गैर राज्य महाराष्ट्र से किया गिरफ्तार। https://www.lokjantoday.com/wp-content/uploads/2023/03/VID-20230328-WA0050.mp4 https://www.lokjantoday.com/wp-content/uploads/2023/03/VID-20230328-WA0048.mp4 घटना का विवरण- दिनांक 10.8.2022 को शिवपुरी कॉलोनी…
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धारा 6 : रेस जेस्टे का सिद्वान्त या एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्य | साक्ष्य विधि
धारा 6 : रेस जेस्टे का सिद्वान्त (Doctrine of Res Gestae) साक्ष्य विवादस्पद विषयों के निस्तारण एवं सत्य का पता लगाने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। विवादास्पद विषयों के सम्बन्ध में साक्ष्य की गुणवत्ता महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। तथ्यों की सुसंगति यह निर्धारित करती है कि, किसी न्यायिक कार्यवाही में क्या तथ्य किसी पक्षकार द्वारा साबित किये जा सकते है और उन्हें साबित करने के साधन एंव तरीके क्या है? यह भी जाने - साबित, नासाबित व साबित नहीं हुआ की व्याख्या | धारा 3 धारा 6 : रेस जेस्टे का सिद्वान्त अथवा एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्य धारा 6 में यह प्रावधान है कि - "जो तथ्य विवाद्यक न होते हुए भी किसी विवाद्यक तथ्य से इस प्रकार संसक्त हैं कि वे एक ही संव्यवहार के भाग हैं, वे तथ्य सुसंगत हैं, चाहे उसी समय और स्थान पर या विभिन्न समयों और स्थानों पर घटित हुए हों।" उदाहरण – क पर ख की पीटकर हत्या करने का आरोप है। क या ख या पास खड़े ल���गों द्वारा जो कुछ भी पिटाई के समय या उससे इतने अल्पकाल पूर्व या पश्चात् कहा या किया गया था कि वह उसी संव्यवहार का भाग बन गया है, वह सुसंगत तथ्य है। संव्यवहार का तात्पर्य है - "कि कार्यों की लड़ी कुछ इस तरह होनी चाहिये कि वह एक-दूसरे से पूर्णतया जुड़े हों। यदि ऐसा हो तो उन कार्यों में एक दूसरे के समय की निकटता एक महत्वपूर्ण मायने रखती है।" स्टीफेन ने अपने डाईजेस्ट में कहा है कि - "संव्यवहार तथ्यों के ऐसे समूह को कहते हैं जो एक-दूसरे से इतने जुड़े रहते हैं कि उन्हें एक ही नाम दिया जा सकता है जैसे कि कोई अपराध, संविदा, अपकृत्य अथवा जाँच पड़ताल का कोई भी ऐसा विषय जो विवाद्यक हो। सामान्य तौर पर संव्यवहार किसी भी भौतिक कार्य (Physical acts) के लिये प्रयोग किया जा सकता है या एक के बाद एक होने वाले भौतिक कार्यों के लिये जिसमें वे कथन भी सम्मिलित होंगे जो कार्य या कार्यों के साथ होते चले गये थे| 'रेस जेस्टे' का सिद्धान्त : धारा 6 धारा 6 में जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है उसे रेस जेस्टे का सिद्धान्त' (Principle of Res gestae) कहा जाता है। शब्द 'रेस जेस्टे' का शाब्दिक अर्थ है 'सम्बन्धित तथ्य'| यह शब्द लैटिन भाषा का है जिसका अर्थ है - “जो काम किया गया है” और अंग्रेजी में इसका अर्थ है - “ऐसे कथन या कार्य जो किसी संव्यवहार के साथ हुए है, यह सिद्वांत आंग्ल विधि पर आधारित है| इस प्रकार धारा 6 के अनुसार ऐसे तथ्य जो विवाद के बिंदु नहीं है, लेकिन वे तथ्य विवाद की विषय वस्तु से इस तरह जुड़े हुए है कि वे तथ्य उस घटना यानि एक ही संव्यवहार के ही भाग समझे जाते है, चाहे वे एक ही समय एंव स्थान पर घटित हुए हो या अलग अलग समय एंव स्थान में घटित हुए हो, सुसंगत तथ्य माने जाते है, रेस जेस्टे कहलाते हैं। यह भी जाने - साक्ष्य क्या है, परिभाषा एंव साक्ष्य के प्रकार | Definition of evidence in Hindi जनतेला वी राव बनाम स्टेट ऑफ आन्ध्रप्रदेश का एक प्रकरण जिसमे एक बस को आग से जला दिया गया था जिससे काफी लोग क्षतिग्रस्त हो गये। उन्हें अस्पताल पहुँचाया गया तथा मजिस्ट्रेट द्वारा उनके कथन लेखबद्ध किये गये। इन कथनों को एक ही संव्यवहार का भाग नहीं माना गया, क्योंकि वे घटना के काफी समय पश्चात् किये गये थे। (ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 2791) रेस जेस्टे का तात्पर्य है - एक ही संव्यवहार का भाग होने वाली घटनायें। रेस जेस्टे को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि वह मुख्य तथ्य की आनुषंगिक बात और उसे स्पष्ट करने वाली बात है जिसमें कार्य (act) और शब्द (word) भी शामिल है जो उससे इस प्रकार से घनिष्ट रूप से स���्बन्धित होते हैं कि वे एक ही संव्यवहार के भाग होते हैं और बिना उनके ज्ञान के मुख्य तथ्य को ठीक से नहीं समझा जा सकता है। रेस जेस्टे एवं अनुश्रुत साक्ष्य - अनुश्रुत साक्ष्य का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है जिसने घटना होते नहीं देखी बल्कि उस घटना के बारे में उस व्यक्ति से सुना है जिसने वह घटना होते देखी है| इस तरह ऐसा व्यक्ति साक्ष्य नहीं दे सकता है क्योंकि उसका ज्ञान अनुश्रुति पर आधारित है| लेकिन अनुश्रुत साक्ष्य तब दिया जा सकता है जब वह घटना का भाग हो, इस तरह रेस जेस्टे का सिद्धान्त अनुश्रुति (Hearsay) के साक्ष्य को अस्वीकृत करने के सिद्धान्त का एक अपवाद प्रस्तुत करता है। रेस जेस्टे के रूप में ग्राह्य साक्ष्य – (i) अपराध किये जाने के स्थान और समय पर अभियुक्त द्वारा किया गया कथन, (ii) स्त्री के विरुद्ध लैंगिक अपराधों में किसी तीसरे व्यक्ति को किये गये कथन, (iii) वसीयतकर्त्ता द्वारा विल के रजिस्ट्रीकरण के समय किया गया कथन (iv) दत्तक ग्रहण के प्रश्न पर विनिश्चय में दत्तक-विलेख (v) वचनपत्र पर किसी पर्दानशीन महिला द्वारा किये गये हस्ताक्षर के बारे में उसके पति का कथन आर. एम. मालकानी बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र में यह निर्णित किया गया है की जब कोई ऐसी बातचीत चल रही हो जो किसी संव्यवहार का भाग होने के कारण सुसंगत है तो यदि उसे तत्क्षण या उसी समय टेप कर लिया जाए तब ऐसी टेप सुसंगत तथ्य होगी तथा यह रेस जेस्टे होगी| अधिक जाने - धारा 6 : रेस जेस्टे का सिद्वान्त अथवा एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्य Read the full article
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राजस्थान में अपराध को लेकर गहलोत सरकार सख्त, ऐसे कसेगी नकेल, मृत्युदंड तक का प्रावधान
राजस्थान में बढ़ती आपराधिक गतिविधियों को देखते हुए गहलोत सरकार एक्टिव मूड में आ गई है। अपराध पर लगाम लगाने के लिए राज्य सरकार ने महाराष्ट्र, यूपी, दिल्ली और कर्नाटक की तर्ज पर संगठित अपराधों के खिलाफ एक विधेयक लाने का फैसला किया है। गहलोत कैबिनेट ने बुधवार को राजस्थान संगठित अपराध नियंत्रण (आरओसीसी) विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी। जल्द ही विधानसभा में इसको लेकर बिल पेश किया जाएगा। कैबिनेट बैठक…
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31/12/2022 मुख्य समाचार ब्राजील के महान फुटबॉलर पेले का निधन. बेंजामिन नेतन्याहू फिर बने इजरायल के PM, छठी बार ली शपथ. महाराष्ट्र लोकायुक्त विधेयक पारित करने वाला देश का पहला राज्य बना. अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भारतीय-अमेरिकी राजीव बड्याल को राष्ट्रीय अंतरिक्ष परिषद सलाहकार समूह में नामित किया. आईटी मंत्री ने साइबर अपराध से निपटने के लिए ‘स्टे सेफ ऑनलाइन’ अभियान शुरू किया. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सीमा सुरक्षा बल का “प्रहरी ऐप” लॉन्च किया. IAF ने सुखोई प्लेन से 400 किमी रेंज वाली ब्रह्मोस मिसाइल का सफल परीक्षण किया. #apcbheja #nonprofitorganization #latestnews #newsupdate #governmentjobs #currentaffairs #genralawareness #bheja #madhubani #Bihar (at Bheja, Bihār, India) https://www.instagram.com/p/Cm009jXSI3P/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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लखपति दीदी रैली में पीएम मोदी का बड़ा बयान, कहा, महिलाओं के खिलाफ अपराध अक्षम्य अपराध, दोषी को बख्शा नहीं जाना चाहिए
PM Modi News: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को महाराष्ट्र के जलगांव पहुंचे। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने उन 11 लाख नई ‘लखपति दीदी’ को प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया, जिन्होंने उनके तीसरे कार्यकाल के दौरान इस मुकाम को हासिल किए हैं। पीएम मोदी ने 2,500 करोड़ का रिवॉल्विंग फंड भी जारी किया। इससे 4.3 लाख स्व��ं सहायता समूहों (एसएचजी) के लगभग 48 लाख सदस्यों को लाभ होगा। पीएम मोदी ने 5,000 करोड़ का…
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महाराष्ट्र : निर्भया फंड के 'दुरुपयोग' पर विवाद जारी, विपक्ष लगातार उठा रहा जांच की मांग
महाराष्ट्र : निर्भया फंड के ‘दुरुपयोग’ पर विवाद जारी, विपक्ष लगातार उठा रहा जांच की मांग
मुंबई: ‘��िर्भया कोष’ (निर्भया फंड) के तहत मुंबई पुलिस द्वारा खरीदे गए कुछ वाहनों का उपयोग महाराष्ट्र सरकार के मंत्रियों की सुरक्षा के लिए किए जाने के मामले पर विवाद जारी है. विपक्ष जहां इस मुद्दे पर सरकार को घेर रहा है. वहीं, सरकार तर्क देकर अपने बचाव में लगी हुई है. सरकार का कहना है कि महाविकास अघाड़ी के कार्यकाल में महिलाओं के प्रति अपराध बहुत ज्यादा बढ़ गए थे. यह भी पढ़ें एनडीटीवी से बात…
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सलमान खान केस: मुंबई पुलिस का सिर दर्द बढ़ा गया अनुज थापन, बिश्नोई गैंग पर शिकंजा कसना अब होगा मुश्किल!
नई दिल्ली: दोपहर करीब 12:30 बजे का वक्त रहा होगा। मुंबई पुलिस कमिश्नर के दफ्तर में बने लॉकअप के बाहर बुधवार को आम हलचल थी। रुटीन चेकिंग के लिए लॉकअप के ऑफिसर इंचार्ज फर्स्ट फ्लोर पर पहुंचे। उनकी नजरें लॉकअप के अंदर झांक ही रहीं थी कि एक कैदी ने उनके कान खड़े कर दिए। उस कैदी ने बताया कि अनुज थापन टॉयलेट गया था, और अभी तक वापस नहीं लौटा। तुरंत लॉकअप का ताला खोला गया और ऑफिसर के साथ कुछ और पुलिसवाले अंदर दाखिल हुए। टॉयलेट का दरवाजा अंदर से बंद था। किसी तरह दरवाजा खोला गया तो भीतर का हाल देखकर पुलिसवालों की आंखें फटी रह गईं।टॉयलेट के अंदर अनुज थापन फंदा लगाकर लटका हुआ था। उसे तुरंत उतारा गया। पुलिसकर्मी आनन-फानन में उसे लेकर हॉस्पिटल भागे। लेकिन, तब तक देर हो चुकी थी। डॉक्टरों ने बताया कि अनुज थापन के अंदर सांसें नहीं बची हैं। इस बीच पुलिस के आला अफसर भी हॉस्पिटल पहुंच चुके थे। खबर से मुंबई पुलिस की नींद उड़ गई। पूरे महकमे में एक हड़कंप मच गया। ये वही अनुज थापन था, जिसे सलमान खान के घर पर फायरिंग के लिए शूटर्स को हथियार पहुंचाने के इल्जाम में गिरफ्तार किया गया था। मामले में मुंबई पुलिस ने एक्सिडेंटल डेथ का केस दर्ज किया है। साथ ही मौका-ए-वारदात के सीसीटीवी फुटेज भी सुरक्षित कर लिए हैं। अनुज की गिरफ्तारी और मकोका का चार्ज अनुज थापन को करीब 5-6 दिन पहले पंजाब के अबोहर से गिरफ्तार किया गया था। दरअसल, की जांच में जुटी मुंबई पुलिस लगातार मामले की कड़ियों को जोड़ रही थी। फायरिंग के तार गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई से जुड़े होने के बाद अनुज थापन की गिरफ्तारी पुलिस के लिए इस केस में एक बड़ा हथियार थी। जिसके बाद मुंबई पुलिस ने मामले में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) भी लगा दिया था। लेकिन, अब ने पुलिस का सिरदर्द बढ़ा दिया है। उसकी मौत के बाद पुलिस के लिए अब गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई पर शिकंजा कसना भी मुश्किल होगा। अनुज थापन की मौत से क्यों टेंशन में पुलिस? दरअसल, मामले में मकोका का जो चार्ज लगाया गया है, अनुज थापन की मौत के बाद वो कमजोर पड़ सकता है। इस बात की आशंका पुलिस के आला अफसरों को भी है। सलमान खान फायरिंग केस में मकोका का आरोप तभी टिक पाएगा, जब पकड़े गए आरोपियों में किसी एक का नाम पिछले 10 सालों के भीतर किसी चार्जशीट में आया हो। गिरफ्तार आरोपियों में क���वल अनुज थापन ही था, जिसके खिलाफ पहले से हत्या की कोशिश और जबरन वसूली सहित संगीन धाराओं में तीन मुकदमे दर्ज थे। अनुज थापन ने क्यों की खुदकुशी? मुंबई पुलिस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अनुज थापन ने मकोका के डर की वजह से खुदकुशी जैसा बड़ा कदम उठाया। उसे लगने लगा था कि मामले में मकोका लगने के बाद अब कभी वो जेल से बाहर नहीं निकल पाएगा। हालांकि, अनुज थापन के परिवार ने खुदकुशी के दावों का खंडन किया है। परिवार से जुड़े एक सदस्य ने सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर अनुज खुदकुशी क्यों करेगा? उन्होंने बताया कि वो एक जिंदादिल नौजवान था। एक ट्रासपोर्टर के पास उसकी ठीकठाक नौकरी चल रही थी। परिवार ने अनुज की मौत के पीछे साजिश का अंदेशा जताया है। इस वक्त कहां हैं बाकी तीनों आरोपी? अनुज थापन की मौत के मामले की जांच सीआईडी को सौंप दी गई है। जिस लॉकअप में उसने खुदकुशी की, वो कमिश्नर दफ्तर के फर्स्ट फ्लोर पर बना है। इस पुरानी बिल्डिंग में पहले और दूसरे फ्लोर पर लॉकअप हैं और बुधवार को 11 आरोपी इनमें बंद थे। पिस्टल सप्लाई करने का दूसरा आरोपी अपनी पुरानी चोट की वजह से इस वक्त न्यायिक हिरासत में है। हालांकि, सलमान खान के घर पर फायरिंग के मुख्य आरोपी विक्की गुप्ता और सागर पाल को यहां नहीं रखा गया था। ये पूरी बिल्डिंग सीसीटीवी कैमरों से कवर है। http://dlvr.it/T6JVGW
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